छद्म अम्बेडकरवाद क्या है ?

साथियों एक बार फिर मैं आप लोगों के बीच छद्म अम्बेडकरवाद क्या है ? लेकर आया हूँ | आप सभी को यह साझा करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है और मैं फिर इस बार हमारे छद्म अम्बेडकरवादी साथियों से गाली खाने के लिए तैयार होकर प्रस्तुत हो रहा हूँ क्योंकि जिस तर्क की वे बात करते हैं और उनकी शालीनता हमारे सत्य बातों के सामने चरमारकर टूट जाती है वे अपनी सत्य आलोचना सहन नहीं कर पाते | हम भी कभी-कभी शालीनता और सहनशीलता खो बैठते हैं आख़िर मनुष्य हैं और मनुष्य से गलती होना लाज़मी है |
वैसे बताना चाहूंगा कि मुझे छद्म अम्बेडकरवाद क्या है ? यह लिखने का प्रोत्साहन हमारे छद्म अम्बेडकरवादी मित्र ही देते हैं,मैं हृदय से उनका शुक्रगुज़ार हूँ और साथ में यह भी कहना चाहता हूँ छद्म अम्बेडकरवाद जितना घातक सतनामियों के लिए है उससे कहीं ज्यादा छद्म अम्बेडकरवाद,अम्बेडकरवाद के लिए घातक है |
चलिए साथियों आप लोगों को मैं लेख की ओर ले चलता हूँ, इस लेख में भी 10 बिन्दू लिया गया है    |


1.छद्म अम्बेडकरवादी हमें कहते हैं कि तुम इतिहास नहीं जानते तुम्हें इतिहास पढ़ना चाहिए जिसके लिए  तुम्हें हम कैडर देंगे.. |


नोट :- छद्म अम्बेडकरवादी मिशनरी लोग तरह-तरह के कैडर देते हैं और लोगों से समाज की भलाई के नाम पर उनसे धन राशि वसूली करते हैं और हमारे ही लोगों से पैसे लेकर हमारे ही लोगों के सामाजिक सांस्कृतिक स्वरूप को तोड़ने के लिए भ्रमित करने वाला कैडर देते हैं | जिसमें वे महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश,दक्षिण भारत,कोलकाता एवं 5,000 वर्षों का भारतीय इतिहास पढ़ाते और थोपते हैं | 
मजे की बात देखिए कुछ दिन पहले मुझे एक पी.डी.एफ. फाईल वाट्सएप्प में मिला,इसका नाम कैडर-GGG है जिसमें लेखक,प्रकाशक के नाम का अता पता नहीं है और लिखते हैं गुरु घासीदास जी छ: माह के लिए आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए कोई साधना नही किए वे छाता पहाड़ के रास्ते से अपने मांगों को पूरा करने के लिए अंग्रेजी शासन के पास गए और वहाँ से लौटने में गुरु घासीदास जी को छ: माह लग गये तब वे वहाँ से आकर फिर छाता पहाड़ और गिरौदपुरी में सभा कर लोगों को सम्बोधित किए | यह सब पढ़कर हँसी आती है इनके सोच पर यह हमारे इतिहास को अपने कैडर के माध्यम से तोड़ने मरोड़ने का कार्य कर रहे हैं | क्या हम इनसे पूछ सकते हैं इनके मिशन के सबसे प्रथम युगपुरुष बुध्द बाबा आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए साधना नही किए थे क्या? बुध्द बाबा ब्रिटेन जाकर और अरब देश जाकर ज्ञान लाये थे क्या ?
आप ही सोचिए ऐसा विचारधारा जो आपके इतिहास और संस्कृति को नष्ट करने में लगा है वह आपके लिए कैसे हितकारी हो सकता है??


2.छद्म अम्बेडकवादी महापुरुषों को सम्मान देने का ढ़ोंग करते हैं |


नोट :- छद्म अम्बेडकरवादी अक्सर सोशल मीडिया में या वास्तविक जीवन में चर्चा के दौरान कुछ महापुरुषों का नाम लेते समय बाबा,संत,मान्यवर,साहब,महामना,महामानव,गुरु,महात्मा इत्यादि आदरसूचक और महिमामण्डित करने वाले शब्दों को उनके नाम से पहले या बाद में जोड़ते हैं | 
जब गुरु घासीदास जी, गुरु बालक दास जी,गुरु अमरदास जी या हमारे अन्य माता एवं महापुरुषों की बारी आती है तो उनके वाक्य प्रयोग में घासीदास,बालक दास, अमर दास ऐसे होते हैं जैसे इनके घर के ये बच्चे हैं | हम जब प्रत्यक्ष इन चीजों का विरोध करते हैं तो बड़ी सहजता से माफी मांगते हुए टालते हैं और कहते हैं लिखने की या बोलने की जल्दबाजी में हो गया भाई... 
ऐसी बातें कितना उचित है? ऐसी बातें एक बार दो बार हो तो लोग इग्नोर कर सकते हैं लेकिन अधिकतर सुना और देखा जाये तो यह इग्नोर करने वाली बात नहीं है | दूसरे तो सम्मान करने से रहे नहीं लेकिन जब अपने लोग भी वैसा ही करेंगे तो स्थिति कैसे सुधर सकता है? 


3.छद्म अम्बेडकरवादी लोग सतनामी समाज के गौरवशाली इतिहास का मज़ाक उड़ाते हैं,जानिए कैसे ? |


नोट :- हमारे लोग जब सतनामी समाज के ऐतिहासिक बातों को सोशल मीडिया में प्रचारित करते हैं तो छद्म अम्बेडकरवादियों के पेट में दर्द होना शुरु हो जाता है और वे मेसेज में हँसने का इमोजी डालते और कमेंट करते हैं | सतनामी समाज के लोग मालगुजारी,गौटियाई,गुरु बालक दास जी को राजा की उपाधि मिलना,पिण्डारियों को छत्तीसगढ़ से मार भगाना,मराठा और पेशवा शासन के अत्याचारों तथा समाज में फैली विषमताओं के विरुद्ध सतनाम आंदोलन चलाना,डोला में बहू लाने की प्रथा का शुभारम्भ करना | यह सब इन्हें पच नही पाता और यह कहते हैं सतनामी समाज के लोग अपने इतिहास पर गर्व करते बैठे हैं.. और यही लोग हाँकते हैं जो अपना इतिहास नहीं जानता वह क्रांति नहीं कर सकता...इन्हें अपने हाँडी-गोंड्डी, झाडू बंधने वाले इतिहास पर बहुत ज्यादा गर्व होता है | इतिहास में शोषण प्रत्येक अनुसूचित जाति वर्ग में चिन्हांकित समाज और लोगों के साथ हुआ है प्रत्येक क्षेत्र,प्रदेश,और समाज में अमीर गरीब होते हैं और उनकी परिस्थिति के हिसाब से शोषक वर्ग उनका शोषण करते हैं और शोषण के हिसाब से क्रांति होती है  | भारत में अन्य राज्यों में आज जितना अनुसूचित जाति वर्ग का शोषण हो रहा है उतना छत्तीसगढ़ में नहीं हो रहा है और यह सब हमारे महापुरुषों और समाजिक कार्यकर्ताओं के कार्यों का प्रतिफल है | छद्म अम्बेडकरवादियों का दोमुहापन क्या उचित है??


4.छद्म अम्बेडकरवादियों द्वारा प्रचारित किया जाता है कि अगर अब तक गुरु घासीदास जी के सतनाम आंदोलन को कोई अच्छे से समझ पाया है तो वे बाबा साहब अम्बेडकर जी थे |


नोट :- इनका ऐसा प्रचार करना इन्हें विश्वगुरु की पदवी प्रदान करती है और इसे प्रमाणित करने के लिए ये यह भी कहते हैं कि गुरु घासीदास जी की अमृतवाणियों को बाबा साहब ने 100% संविधान में स्थान दिया है | तब मैं ऐसे लोगों को यह जानकारी बताना चाहूंगा की दुनिया में जितने भी महामना,महामानव,संत,महात्मा,समाज सुधारक हुए, उनका संदेश और हितोपदेश समस्त दुनिया और समस्त जीव-जन्तु के लिए होते हुए मानवता पर आधारित रही है | ऐसे में विचारों का मेल खाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है और कोई किसी को 100% समझ गया इस तरह की कोई बात है ही नहीं | ऐसी बात रहती तो संविधान की धारा में वे लिखकर जाते यह न्याय की धारा गुरु घासीदास जी की अमृतवाणी के आधार पर है, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है | हमारे भारत में जैन महावीर जी,महात्मा बुध्द जी,गुरु रविदास जी,सद्गुरु कबीर साहेब जी,गुरु नानक देव जी या फिर वे गुरु घासीदास जी हों, सबका संदेश उपदेश मानवता और दुनिया के लिए है |


5.हमारे छद्म अम्बेडकरवादी भाई लोग अक्सर यह कहते,लिखते अपने वाद से विवाद खड़ा करते नज़र आते हैं कि बाबा साहब अम्बेडकर जी ने गुरु घासीदास जी की जीवनी लंदन की लाइब्रेरी में पढ़ा और सतनाम आंदोलन के बारे में जाना-समझा और प्रचार किया |